वन्य प्राणियों के अनछुए पहलु के लिए पधारें - http://vanprani.blogspot.com (वन्य प्राणी) पर * * * * * * * वनपथ की घटना /दुर्घटना के लिए पधारें- http://vanpath.blogspot.com (वनपथ) पर

शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

जब वन अपराध की विभिन्न धाराओं को ग़ैर जमानती एवं संज्ञेय अपराध घोषित की गयी!

इस दरमियान ये सूचना आई कि वन प्रमंडल पदाधिकारी सभी वनरक्षियों, वनपालो एवं वन क्षेत्र पदाधिकारियों की एक बैठक कार्यालय प्रशिक्षण हेतु बुलाया, जिसमे सरकार द्वारा वन अपराध की विभिन्न धाराओ को ग़ैर जमानातीय एवं संज्ञेय अपराध घोषित होने पर एवं इस सापेक्ष में किस तरह कार्यवाई की जाय, इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। सभी वनकर्मी खुश हुए की अब अपराधियों को तुरंत जमानत नहीं मिलेगी तथा वन अपराध थमेगा लेकिन ये भ्रम भी जल्द हीं ख़त्म हो गई और जितनी अपेक्षा की गई थी, वह प्राप्त नहीं हुई लेकिन अवैध पातन कुछ कमी के साथ जारी रहा।
वन प्रमंडल पदाधिकारी से लेकर वनरक्षी तक अपनी कार्य कुशलता का सौ प्रतिशत दे रहे थे लेकिन कार्य में संतोष नहीं मिल रहा था। इसी बीच एक दिन वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री अरविन्द कुमार, भा० व० से० एवं सहायक वन संरक्षक श्री विकाश चन्द्र राजडेरवा पहुंचे। उनके साथ पोखरिया वनपाल श्री विजय कुमार सिंह भी थे। सभी कर्मचारी फिर से रेस्ट हाउस में एकत्रित हुए। वन प्रमंडल पदाधिकारी थोडे उदास थे, साथ हीं हाथ में एक फ़ाइल भी थी। वे हमलोगों के आने का इंतजार कर रहे थे। जब सभी कर्मी एकत्रित हो गए तो उन्होने हमलोगों के नजदीक आकर कुछ अखबार की कटिंग दिखाई और पढने को कहा जिसमे पार्क में हो रही अवैध कटाई को प्रकाशित किया गया था। तत्पश्चात वन प्रमंडल पदाधिकारी महोदय ने थोडे साहसी अंदाज में कहा इससे विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। हमलोग काम कर रहें हैं, इसमे हमलोगों को सफलता भी मिल रही है लेकिन आम लोग एवं उचाधिकारी आपके कार्य को नहीं देखेंगे, उन्हें उपलब्धि चाहिए, वो तभी दिखाई देगा जब अश्रयाणी क्षेत्र में अवैध पातन बंद हो जाएगा। इस संबंध में मैंने एवं सहायक वन संरक्षक ने कुछ नया करने को सोचा है। आपलोग भी अपनी राय दीजिए एवं इस नए चीज को तुरंत लागू भी हमलोग जल्द हीं करेंगे।

हमलोगों के हाथ में एक पेज का एक फार्म थमाया गया जिसपर ऊपर मोटे अक्षरो में लिखा था - वन सुरक्षा समिति ------ एवं नीचे विभिन्न कंडिकाऐं थी जिसमे एक ग्यारह लोगो की कमिटी गठन का प्रारूप था। फार्म देखने के बाद हमलोगों ने पुन: वन प्रमंडल पदाधिकारी को लौटा दिया, तब उन्होने इसपर अपना विचार देना शुरू किया - हमलोग हर रक्षित वन के बगल के गाँव के ग्यारह जागरुक नागरिको की कमिटी बनाएगे जो जंगल की सुरक्षा करेगा। आपलोग तो जानते हीं हैं कि रक्षित वन में ग्रामीणों कि हिस्सेदारी होती है, प्रतिवर्ष वे कूप के माध्यम से वृक्षों कि कटाई के उपरांत आपस में ग्रामीण बाँटते है, जानवरों को जंगल मे चराने, सुखी लकड़ी निकालने का हक खातियान पार्ट-२ के माध्यम से उन्हें प्राप्त है तो क्यो न उन्हें इस हक के प्रति जागरुक किया जाय ? इससे आपलोगों को फायदा होगा कि जो कटाई हो रही है वह रूक जाय! ग्रामीण जिस दिन समझ जायेगे कि ये मेरा जंगल है शायद वह वृक्षों को काटना बंद कर दें। जब कटाई हो तो वैज्ञानिक तरीके ताकि पारिस्थितिक संतुलन भी बरक़रार रहे एवं उनका हक भी मिल जाये तथा चोरी चुपके लकड़ी कटाने कि प्रवृति पर रोक लग सके। ये प्रस्ताव नया था लेकिन हमलोगों ने वन प्रमंडल पदाधिकारी की कोशिश मे अपनी सहमति दे दी एवं एक प्रयास करने का बीड़ा उठाने का आश्वासन दे दिया क्योकि ये सारे कार्य हमे समाज मे प्रतिष्ठा दिला सकते थे। अगर पार्क मे कटाई रूक जाती तो जनप्रतिनिधि, पत्रकार एवं जागरुक नागरिक हमलोगों के कार्य की आलोचना करना बंद कर सकते थे। आगे ..... "जब वन सुरक्षा समिति का गठन शुरू हुआ और ग्रामीणों में प्रतिष्ठा मिली"

बुधवार, 21 नवंबर 2007

जब वन सुरक्षा समिति के गठन की परिकल्पना ने जन्म लिया!

रात दिन की गस्ती एवं वन अपराधियों की गिरफ़्तारी तथा वन पदार्थ की जप्ती लगातार जरी थी, ये सिलसिला तीन माह तक चला लेकिन हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी वृक्षों की कटाई पर पूर्णत: रोक नही लगा। रोज जन प्रतिनिधि, जागरुक नागरिक एवं पत्रकार वन्य प्राणी आश्रयणी में अवैध पातन की शिक़ायत हजारीबाग से पटना तक पहुँचा रहे थे तथा उच्चाधिकारियों के तीखे तेवर दुविधा में डाल दिये थे। ये समय की परीक्षा थी कि क्या अवैध पातन पूर्णत: रूक पायेगा? इतनी गिरफ्फ्तारी, गस्ती एवं जप्ती के बाद भी पूरे वन्य प्राणी आश्रयणी से प्रतिदिन २० से ३० बैलगाडी सखुआ का सैपलिंग [बाल वृक्ष] काटा जा रहा था। ग्रामीण एवं वन अपराधी प्रतिदिन ये कार्य कर रहे थे। हमलोग रात्रि गस्ती एक ओर जाते तो सुबह खबर मिलती की फलां जगह से १० सगड़ [बैलगाडी] लकडी निकल गया। अत: ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा था। तब मन में ये बात आयी की और कोई रास्ता अवैध पातन से निपटने का हो सकता है क्या ?..........आगे -''जब वन अपराध की विभिन्न धारायो को ग़ैर जमानती एवं संज्ञेय अपराध घोषित की गयी!"

रविवार, 18 नवंबर 2007

हजारीबाग वन्यप्राणी आश्रयणी में वन अपराध पर अंकुश लगा!

समय बीतने के साथ मज़बूरी में शुरु की गई नौकरी रोचक बनने लगी। वन क्षेत्र पदाधिकारी स्वर्गीय श्री एस एन दुबे मेरे साहस एवं कार्यक्षमता का पुरा इस्तेमाल किया। अब मै सिर्फ अपने परिसर राजडेरवा में गस्ती नहीं कर रहा था बल्कि उनके साथ प्रमंडल से प्राप्त जीप में सवार होकर रात - दिन तीनो परिसर - वहिमर, राजडेरवा एवं पोखरिया में गस्ती कर रहा था तथा वन अपराधियों की धर- पकड़ तेज हो गई थी। रात में वन अपराधियों को गिरफ्तार करते थे एवं सुबह आठ बजे उनका चालान बनाते तथा जेल हाजत भेजने का कार्य करते थे। ये मेरा प्रतिदिन का रूटीन कार्य हो गया। जब पुरा माह समाप्त हुआ तो एक दिन वन प्रमंडल पदाधिकारी अचानक राजडेरवा पहुँच गए। हमलोग दोपहर का भोजन कर वन क्षेत्र पदाधिकारी के साथ आवासीय परिसर में हाफ़ पैंट एवं टी सर्ट पहन कर घूम रहे थे तभी वन प्रमंडल पदाधिकारी का जीप पहुँचा एवं उन्होने हाथ से हमलोगों को ईशारा करते हुए रेस्ट हॉउस पहुँचने को कहा। मै तुरंत तैयार हो कर वन क्षेत्र पदाधिकारी के साथ रेस्ट हॉउस पहुँचा। मुझे देखते ही चहकते हुए बोले - आपलोगों ने तो कमाल कर दिया, इस माह आपने २८ गिरफ्तार केस पकड़ा है । इसी बीच सभी वनरक्षी भी रेस्ट हॉउस पहुँच गये और जब हमने वन अपराधियों से की गयी शक्ति प्रयास का जिक्र किया एवं जंगल कटाई में कमी की बात बताई तो उनकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी। ज्ञात हो कि वे वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री अरविन्द कुमार , भा० व० से० थे; जो वर्तमान में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, झारखण्ड है। .......... आगे - " जब वन सुरक्षा समिति के गठन की परिकल्पना ने जन्म लिया! "

लेखों की सूची { All Post }