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गुरुवार, 15 जनवरी 2009

जोश में होश खोये, हुए तड़िपार

मैंने तुंरत वर्दी पहनी, श्री दुबे वनरक्षी को साथ लिया एवं मोटर साईकिल से उस सात किलोमीटर की जंगल, पहाड़ की उबड़-खाबड़ रास्ते से चलते, फिसलते गांव पहुँचा. वहाँ की स्थिति देख मै भी एक पल को अन्दर से हील गया. जिस व्यक्ति पर रात में करीब ११ बजे हमला हुआ है, वह खाट पर रात के २ बजे तक पड़ा है और उसे अभी तक कोई डाक्टरी सुविधा प्राप्त नहीं हुई है. उसके शरीर से काफी खून निकल गया है एवं वह बेसुध लेटा है जबकि पूरा गावं मेला लगाकर खड़ा है और मेरा इंतजार कर रहा है. मैने तुंरत गाड़ी के बारे में जानकारी ली, पता चला कि जो युवक गाड़ी लाने गए हैं, अभी तक लौटे नहीं हैं. मैने कहा कि इसका इलाज़ जरूरी है अन्यथा इन्हें बचाना मुश्किल होगा. यहाँ से अस्पताल की दूरी तीन किलोमीटर थी, मैने कहा कि और कोई उपाय सोचों क्योंकि अगर गाड़ी नहीं मिली तो? इतने में वे उत्शाही नवयुवक भी साईकिल से आ गए थे जो मुझे बुलाने गए थे. वे हिम्मती एवं जोश से भरे थे. उन्होंने तुंरत कहा कि हमलोग खाट सहित इसको उठाकर अस्पताल ले चलते हैं, लेकिन मैंने उन्हें ऐसा करने से रोका एवं बैलगाडी लाने को कहा एवं कम से कम दो लालटेन लाने को भी कहा. लालटेन जंगली, पहाड़ी एवं कच्चे रास्ते में उनको रास्ता दिखलाता. मेरे कहे अनुसार एक बैलगाड़ी आयी, उसपर जख्मी को डाला गया. उनके साथ परिवार के लोग, समिति के लोग तथा पॉँच नवयुवक मंडली के लोगो को अस्पताल के लिए रवाना किया एवं मै मोटर साईकिल से अस्पताल पहुँचने का आश्वासन देकर भयभीत ग्रामीणों के बीच कुछ समय बिताने की योजना बनाई.
ग्रामीण बहुत डरे हुए थे. इनकी पूरी संख्या, यहाँ तक की औरते अपने छोटे बच्चो को भी अपने साथ उस रात्रि वेला में गाँव की चौपाल पर बैठे थे. मैने उन्हें आश्वत किया कि मै आप के साथ हूँ. मुझे जैसे हीं घटना का पता चला, तुंरत आ गया हूँ. घायलों का इलाज होगा. हुलास महतो पर आपराधिक मामला पुलिस दर्ज करेगी. में अभी यहाँ से जा कर पदमा थाना प्रभारी से बात करूँगा एवं प्राथमिकी दर्ज करूँगा. पुलिस भी आपको मदद देगी, ये एक जघन्य अपराध है. मै भी हुलास महतो को गिरफ्तार करने कि कोशिश करूँगा, उस पर केस दर्ज करूँगा, अगर वह नहीं पकड़ायेगा तो उसपर वारंट निकालूँगा, उसके घर की कुर्की-जप्ती होगी लेकिन किसी भी हालत में उसे छोड़ा नहीं जाएगा. मैं सुबह वन प्रमंडल पदाधिकारी से इस मामले पर बात करूँगा. आपने हिम्मत का काम किया है, सरकार के कार्य में मदद पहुँचाई है. आपके साथ सरकार है, देखियेगा इसका क्या परिणाम निकलता है. इतना सुनने के बाद ग्रामीण थोड़े सहज हुए एवं थोड़ी उनमे साहस बढ़ी. मै भी एक खाट पर उसी चौपाल पर बैठ गया.
थोडी देर बाद मै अस्पताल गया और घायलों के इलाज का इंतजाम कराया, तत्पश्चात समिति के लोगो के साथ पदमा थाना पहुँचा. थाना प्रभारी भी अभी-अभी सुबह की गस्ती से लौटकर चाय पी रहे थे. मै भी उनके साथ चाय पी एवं घटना पर चर्चा किया, तत्पश्चात तुंरत हुलास महतो पर प्राथमिकी दर्ज की गई. पुलिस गस्ती दल सुबह पॉँच बजे गाँव, जाँच के लिए पहुँची. मै भी थाने की जीप से हीं गाँव पहुँचा. पुलिस ने अपनी जाँच की कार्यवाही की और मैने ग्रामीणों को पुलिस के साथ सहज बनाने का कार्य किया. पुनः मै आठ बजे वन प्रमंडल पदाधिकारी के पास पहुंच कर उनके आवास पर रात की घटना की जानकारी दी. यह घटना वन सुरक्षा समिति के अस्तित्व से जुड़ा था. अगर हमलोग आपराधियों पर भारी नहीं पड़ते एवं वन सुरक्षा समिति की हिम्मत टूट जाती तो पूरा जंगल बर्वाद हो जाता. वन अपराधी अपनी योजना में सफल हो जाते, जंगल की कटाई शुरु हो जाती और हमलोग फ़िर पहलेवाली स्थिति में आ जाते. अतः किसी भी हालत में वन सुरक्षा समिति की जोश को कम नहीं होने देना है, ये बात वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कही और उन्होंने मुझे शाबासी देते हुए हरसंभव मदद देने का अश्वासन दिया. उन्होंने आज हीं पुलिस आधीक्षक को पत्र लिखने एवं उनसे मिलकर हुलास महतो की गिरफ्तारी की पहल करने की बात कही, जो मुझे भी जोशीला बना रहा था. सभी बातचीत की जानकारी मैने वन सुरक्षा समिति के सदस्यों को दी ताकि उनका कारवाँ रुके नहीं.
दुसरे दिन से हीं पुलिस तथा वन विभाग की दविस बढी. हुलास महतो की गिरफ्तारी हेतू छापामारी शुरु हुई जिससे घबरा कर एवं अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए वह घर द्वार छोड़ कर भागा.

शनिवार, 10 जनवरी 2009

जब दोनाईकला गाँव के हुलाश महतो ने वनसुरक्षा समिति के सदस्यों पर टांगी से जानलेवा हमला किया

मेरे पूरे परिसर में समिति गठन का कार्य संपादित हो गया था। समितियों का कार्य संतोषजनक था। वनों की कटाई में अचानक गिरावट आ गयी थी। हम वनकर्मी भी थोड़े आराम से सेवा दे रहे थे। अब वनों में आपराधियों से लुक्का-छिपी का खेल नही हो रहा था। वन समितियां पुरे लगन से वन बचा रही थी। वे जागरूक हो गए थे। उन्हें जब कोई अपराधी धमकता या परेशान करता था तो उनकी सूचना पर वन अपराधियों पर शक्त कार्यवाई किया करता था जिससे अपराध की संख्या में भारी गिरावट आयी।
दोंनाई कला वन सुरक्षा समिति पूरे वन्य प्राणी आश्रयणी, हजारीबाग का सर्वोतम समिति थी। यह पदाधिकारियों का भी चहेता समिति था। इसके कार्यों की चर्चा पूरे पार्क क्षेत्र के ग्रामो में थी। यहाँ पिछले एक साल से कोई सखुआ का पेड़ नही कटा गया था। वन समिति दोंनाई कला के सदस्य प्रत्येक रविवार को बैठक करते थे एवं जिस किसी ग्रामीण/अपराधी ने जंगल से पेड़ काटने की कोशिश की उसे सामाजिक रूप से दण्डित करते थे एवं अपराधियों को मेरे हवाले करने की धमकी देते थे जिससे समिति एक सामूहिक एवं सामाजिक शक्ति के रूप में उभर रहा था। वन अपराधी इससे काफी भयभीत हो गए एवं इस ब्यवस्था को ध्वस्त करना चाहते थे। उसी गांव का एक शातिर बदमाश हुलाश महतो आनेवाले दिनों में समिति को आरोपित करने लगा। सामाजिक रूप से बनाये नियमो का उलंघन कर जंगल की कीमती लकडियो को काटकर बेचने लगा जिसकी सूचना मुझे भी मिली। मैंने समिति के अध्यक्ष की हिम्मत बढाई एवं कहा कि अगर वह नहीं मानता है तो रात्रि वेला में ही रंगे हाथो पकडिये एवं इसकी सूचना मुझे दीजिये, मैं उसे जेल भेज दूंगा। इससे समिति कि ताकत बढेगी और आपराधियों में भय फैलेगा जिससे जंगल सुरखित रहेगा। मेरे आश्वासन पर समिति के लोग एवं पूरे गांव के नवयुवक जोश से भर गए एवं समिति के लोग नवयुवको की छोटी- छोटी टोली बनाकर पूरे जंगल में रात्रि गस्ती कराने लगे ताकि उनकी संपदा की रक्षा हो सके तथा हुलास महतो रंगे हाथो पकडा जा सके।
तभी एक बड़ी घटना घट गयी। रात्रि वेला में हुलाश महतो जंगल से लकड़ी काटकर ला रहा था कि समिति के सदस्यों ने उसे ललकारा एवं उसे आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी। वह भी अड़ गया एवं अपने रास्ते से समिति के लोगो को हट जाने को कहा। इस बीच धरो- पकडो की कार्यवाई शुरू हुई और अपने को गिरफ्तारी से बचाने के लिए उसने दो लोगो पर अपनी भारी भरकम कुल्हाडी से हमला कर दिया। खून के फब्बारे निकलने लगे। ग्रामीण एवं समिति के लोग उस अपराधी के कार्यवाई से दहसत में आ गए। पूरा गांव रात के १२ बजे तक घायल लोगो का प्राथमिक उपचार कर रहा था। कुछ नवयुवक बगल के गांव से जीप लेन गए ताकि घायल को अस्पताल पहुंचाया जा सके।
इस बीच समिति के एक बुजुर्ग सदस्य ने नवयुवको को इसकी सूचना मुझे देने को कहा- उन्हें विश्वास था की मै जरूर मदद को आयूंगा। कुछ लोगो ने सुबह सूचना देने को कहा, वे इतने भयभीत थे की सात किलोमीटर जंगली एवं पहाडी रास्तो को तय कर मेरे पास पहुचने में एक तरफ़ जंगली जानवरों का डर था तो दूसरी तरफ हुलाश महतो अपने साथियों के साथ जंगल में छिपे होने एवं उनके ऊपर फ़िर से हमला करने से डरे थे।
रात करीब एक बजे होंगे , सभी वनकर्मी दिनभर की गस्ती के बाद आराम कर रहे थे तभी मेरे क्वार्टर के गेट पर किसी के चिल्लाने की आवाज सुनी - वह आवाज दोंनाई कला के प्रभारी वनरक्षी श्री अमेरिका दुबे का था। मैने तुंरत इस घबराहट भरी आवाज पर बाहर निकला तो देखा की २०-२५ नवयुवक हाथ में डंडा, फरसा, तीर धनुष लिए सहमे उनके साथ खड़े थे। श्री दुबे ने घबराहट भरी आवाज में कहा- "सर, हुलाश महतो आज गिरफ्तार हो गया था लेकिन दो लोगो पर हमला कर जंगल में भाग गया है। घायल लोग गंभीर हालत में है एवं पूरा गांव आपके आने का इंतजार कर रहा है। वे अनपढ़ लोग थाना-पुलिस भी नही जानते, अभी तक अस्पताल भी नही ले गए है। " मैने नवयुवको का चेहरा देखा, वे भय से कांप रहे थे। जो नवयुवक कल तक जोश से लबरेज थे आज एक टूटे हुए एवं जिंदगी से हारे प्रतीत हो रहे थे। मैने नवयुवको का चेहरा देखा, प्रभारी वनरक्षी की स्थिति देखी एवं तुंरत अपना फ़ैसला दिया कि मैं अभी आपके साथ गांव चलूँगा, दुबे जी आप भी वर्दी पहन लीजिये हमलोग पाँच मिनट में यहाँ से निकलेगे। नवयुवको को मैने कहा की आप लोग साईकिल से आगे बढो, डरने की कोई बात नही है, घायल को मै अस्पताल ले जाऊंगा। हुलास महतो अब जेल में होगा, तुम लोग हिम्मत से काम लो, मै तुंरत गांव पहुंच रहा हूँ। नवयुवक फ़िर से जोश में आ गए एवं उनकी शारीरिक गतिविधियाँ तीब्र हो गयी। वे दो- दो करके साईकिल पर सवार हुए एवं जोशीले अंदाज में गांव कि ओर कूच कर गए.
आगे-"जोश में होश खोये, हुए तड़ीपार "

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

जब वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जेहादी अंदाज दिखाया।

वन सुरक्षा समिति का गठन जेहादी अंदाज में शुरू हुआ। पुरे रेंज में गाँव - गाँव घूम कर समिति गठन का काम शुरू हुआ। अब कार्य क्षेत्र का कोई बंधन नही था। ख़ुद वन प्रमंडल पदाधिकारी अपने साथ वनपाल एवं वनरक्षी को लेकर गाँव में निकलते थे एवं समिति का गठन कर ही वापस लौटते थे।
कई मौके तो ऐसे आए की हमलोगो का मन एकदम गांव जाने का नही करता था। हमलोग तरह-तरह से वन प्रमंडल पदाधिकारी को समझाते थे की आज उस गाँव में नही जाया जा सकता है? लेकिन उनकी दिढ़ ईच्क्षा शक्ति ही थी की वे एक ही बात पर अड़ जाते थे की आख़िर वंहा गांववाले इकट्टा होंगे और हमलोगों के आने का इंतजार कर रहे होंगे। कितना भी मौसम ख़राब हो या भारी बारिश हुई हो समिति बनाने का प्रोग्राम स्थगित नही किया जा सकता था ऐसा जज्बा वे रखते थे ।
एक घटना जिहू वन समिति गठन की बताता हूँ । उस दिन आस्रायानी क्षेत्र में भारी बारिस हो रही थी, कच्चा रास्ता होने की वजह से वह पहुचना नामुमकिन था। समिति बनाने की तिथि पुर्व से ही तय थी एवं वन प्रमंडल पदाधिकारी आने वाले हैं ये बात भी प्रचारित था। नियत समय से सभी लोग पोखरिया बीट ऑफिस में उपस्थित थे एवं बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन बारिश कम नही हो रही थी। समय बीतता जा रहा था इतने में वन प्रमंडल पदाधिकारी ने आदेश सुनाया की हमलोग इसी बारिश में गाँव चलेंगे क्योकि गांववाले हमलोगों का इंतजार कर रहे होंगे। इतना सुनते ही सभी कमचारियों ने एक सुर में अस्वीकार कर दिया एवं कहा की ये विना फ़ोर व्हील की पुरानी जीप वहां जा ही नही सकती है लेकिन उनकी दृढ़ता के आगे किसी की नही चली और हमलोग लक्ष की ओर चल दिये। अभी हमलोग आधे किलोमीटर ही गए थे की एक चढाई पर गाड़ी फँस गयी । भारी बारिश में हमलोग गाड़ी नीचे उतरे और चढाई पर धकेल कर जीप को ऊपर पहुचाया एवं भीगे हुए गाँव पंहुचा।
हमलोग थोड़े थके थे लेकिन जब वहां की उपस्थिति देखी तो सभी दंग रह गए। ऐसी भारी जनसमूह को देख कर एक नया जोश भर गया एवं सभा की कार्यवाही शुरू कर दी गई एक फूल मेंबर कमिटी का गठन हुआ। गाववालो के बीच इस बात की बहुत खुशी थी की इतने भारी बारिश में भी हमलोग भींगते हुए उनके गाँव में आए। बाद की सभा में इसका फायदा भी हमलोगों को मिला की एक नोटिस पर पुरा गाँव सभा स्थल पर पहुच जाता था। हमलोग भी इस जेहादी अंदाज से कही न कही प्रभावित थे। आगे - "जब दोनाईकला गाँव के हुलाश महतो ने वनसुरक्षा समिति के सदस्यों पर टांगी से जानलेवा हमला किया।"

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