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शनिवार, 10 जनवरी 2009

जब दोनाईकला गाँव के हुलाश महतो ने वनसुरक्षा समिति के सदस्यों पर टांगी से जानलेवा हमला किया

मेरे पूरे परिसर में समिति गठन का कार्य संपादित हो गया था। समितियों का कार्य संतोषजनक था। वनों की कटाई में अचानक गिरावट आ गयी थी। हम वनकर्मी भी थोड़े आराम से सेवा दे रहे थे। अब वनों में आपराधियों से लुक्का-छिपी का खेल नही हो रहा था। वन समितियां पुरे लगन से वन बचा रही थी। वे जागरूक हो गए थे। उन्हें जब कोई अपराधी धमकता या परेशान करता था तो उनकी सूचना पर वन अपराधियों पर शक्त कार्यवाई किया करता था जिससे अपराध की संख्या में भारी गिरावट आयी।
दोंनाई कला वन सुरक्षा समिति पूरे वन्य प्राणी आश्रयणी, हजारीबाग का सर्वोतम समिति थी। यह पदाधिकारियों का भी चहेता समिति था। इसके कार्यों की चर्चा पूरे पार्क क्षेत्र के ग्रामो में थी। यहाँ पिछले एक साल से कोई सखुआ का पेड़ नही कटा गया था। वन समिति दोंनाई कला के सदस्य प्रत्येक रविवार को बैठक करते थे एवं जिस किसी ग्रामीण/अपराधी ने जंगल से पेड़ काटने की कोशिश की उसे सामाजिक रूप से दण्डित करते थे एवं अपराधियों को मेरे हवाले करने की धमकी देते थे जिससे समिति एक सामूहिक एवं सामाजिक शक्ति के रूप में उभर रहा था। वन अपराधी इससे काफी भयभीत हो गए एवं इस ब्यवस्था को ध्वस्त करना चाहते थे। उसी गांव का एक शातिर बदमाश हुलाश महतो आनेवाले दिनों में समिति को आरोपित करने लगा। सामाजिक रूप से बनाये नियमो का उलंघन कर जंगल की कीमती लकडियो को काटकर बेचने लगा जिसकी सूचना मुझे भी मिली। मैंने समिति के अध्यक्ष की हिम्मत बढाई एवं कहा कि अगर वह नहीं मानता है तो रात्रि वेला में ही रंगे हाथो पकडिये एवं इसकी सूचना मुझे दीजिये, मैं उसे जेल भेज दूंगा। इससे समिति कि ताकत बढेगी और आपराधियों में भय फैलेगा जिससे जंगल सुरखित रहेगा। मेरे आश्वासन पर समिति के लोग एवं पूरे गांव के नवयुवक जोश से भर गए एवं समिति के लोग नवयुवको की छोटी- छोटी टोली बनाकर पूरे जंगल में रात्रि गस्ती कराने लगे ताकि उनकी संपदा की रक्षा हो सके तथा हुलास महतो रंगे हाथो पकडा जा सके।
तभी एक बड़ी घटना घट गयी। रात्रि वेला में हुलाश महतो जंगल से लकड़ी काटकर ला रहा था कि समिति के सदस्यों ने उसे ललकारा एवं उसे आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी। वह भी अड़ गया एवं अपने रास्ते से समिति के लोगो को हट जाने को कहा। इस बीच धरो- पकडो की कार्यवाई शुरू हुई और अपने को गिरफ्तारी से बचाने के लिए उसने दो लोगो पर अपनी भारी भरकम कुल्हाडी से हमला कर दिया। खून के फब्बारे निकलने लगे। ग्रामीण एवं समिति के लोग उस अपराधी के कार्यवाई से दहसत में आ गए। पूरा गांव रात के १२ बजे तक घायल लोगो का प्राथमिक उपचार कर रहा था। कुछ नवयुवक बगल के गांव से जीप लेन गए ताकि घायल को अस्पताल पहुंचाया जा सके।
इस बीच समिति के एक बुजुर्ग सदस्य ने नवयुवको को इसकी सूचना मुझे देने को कहा- उन्हें विश्वास था की मै जरूर मदद को आयूंगा। कुछ लोगो ने सुबह सूचना देने को कहा, वे इतने भयभीत थे की सात किलोमीटर जंगली एवं पहाडी रास्तो को तय कर मेरे पास पहुचने में एक तरफ़ जंगली जानवरों का डर था तो दूसरी तरफ हुलाश महतो अपने साथियों के साथ जंगल में छिपे होने एवं उनके ऊपर फ़िर से हमला करने से डरे थे।
रात करीब एक बजे होंगे , सभी वनकर्मी दिनभर की गस्ती के बाद आराम कर रहे थे तभी मेरे क्वार्टर के गेट पर किसी के चिल्लाने की आवाज सुनी - वह आवाज दोंनाई कला के प्रभारी वनरक्षी श्री अमेरिका दुबे का था। मैने तुंरत इस घबराहट भरी आवाज पर बाहर निकला तो देखा की २०-२५ नवयुवक हाथ में डंडा, फरसा, तीर धनुष लिए सहमे उनके साथ खड़े थे। श्री दुबे ने घबराहट भरी आवाज में कहा- "सर, हुलाश महतो आज गिरफ्तार हो गया था लेकिन दो लोगो पर हमला कर जंगल में भाग गया है। घायल लोग गंभीर हालत में है एवं पूरा गांव आपके आने का इंतजार कर रहा है। वे अनपढ़ लोग थाना-पुलिस भी नही जानते, अभी तक अस्पताल भी नही ले गए है। " मैने नवयुवको का चेहरा देखा, वे भय से कांप रहे थे। जो नवयुवक कल तक जोश से लबरेज थे आज एक टूटे हुए एवं जिंदगी से हारे प्रतीत हो रहे थे। मैने नवयुवको का चेहरा देखा, प्रभारी वनरक्षी की स्थिति देखी एवं तुंरत अपना फ़ैसला दिया कि मैं अभी आपके साथ गांव चलूँगा, दुबे जी आप भी वर्दी पहन लीजिये हमलोग पाँच मिनट में यहाँ से निकलेगे। नवयुवको को मैने कहा की आप लोग साईकिल से आगे बढो, डरने की कोई बात नही है, घायल को मै अस्पताल ले जाऊंगा। हुलास महतो अब जेल में होगा, तुम लोग हिम्मत से काम लो, मै तुंरत गांव पहुंच रहा हूँ। नवयुवक फ़िर से जोश में आ गए एवं उनकी शारीरिक गतिविधियाँ तीब्र हो गयी। वे दो- दो करके साईकिल पर सवार हुए एवं जोशीले अंदाज में गांव कि ओर कूच कर गए.
आगे-"जोश में होश खोये, हुए तड़ीपार "

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