वन्य प्राणियों के अनछुए पहलु के लिए पधारें - http://vanprani.blogspot.com (वन्य प्राणी) पर * * * * * * * वनपथ की घटना /दुर्घटना के लिए पधारें- http://vanpath.blogspot.com (वनपथ) पर

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

कमजोर वन (सुरक्षा) प्रबन्धन की मार पड़ी इंदिरा आवास आवंटी पर

इंदिरा आवास आवंटी पर वन मुकदमा का घटनोत्तर जिक्र मैंने पूर्व के लेख में किया, लेकिन अब प्रश्न उठता है कि इस तरह की घटनाऐं आज भी पूरे भारतवर्ष में घट रहीं हैं जिसकी पृष्टभूमि की जाँच होनी चाहिए एवं सुधार के लिए आगे की कारवाई भी अपेक्षित है; जो नहीं हो रहा है। मैं तोपचाँची (गोमो, धनबाद) की पूर्व वर्णित घटना का बिन्दुवार विभागीय कार्य पद्धति का मूल्यांकन करने की कोशिश कर रहा हूँ कि आखिर इस इंदिरा आवास आवंटी पर वन मुकदमा की नौबत क्यों आई:-
Ø ऐसे दर्ज हुआ वन अपराध का अपराध प्रतिवेदन: अपराध प्रतिवेदन प्रस्तुती पर जब मैंने छानबिन किया था तो पाया कि इस मुकदमा को दर्ज करने के पीछे विभागीय कार्य पद्धति हीं कहीं न कहीं जिम्मेवार थी। हुआ ये था कि किसी व्यक्ति ने जिसकी आरोपी से अनबन रहती थी, उसने एक शिकायत वाद वन प्रमंडल पदाधिकारी, धनबाद के नाम से डाला कि प्रभारी वनरक्षी अनुचित लाभ लेकर जंगल की जमीन पर पक्का मकान बनवा रहा है। जबकि वस्तुस्थिति ये थी कि कार्य क्षेत्र बड़ा होने की वजह से वनरक्षी को मालुम हीं नहीं था कि वहाँ पर मकान बन रहा है। उक्त शिकायत वाद पर वन प्रमंडल पदाधिकारी ने एक प्रशिक्षु भारतीय वन सेवा के पदाधिकारी को जाँच का जिम्मा दे दिया। प्रशिक्षु पदाधिकारी ने अनुभव की कमी के चलते वनरक्षी को को शंका की दृष्टि से देखा एवं जाँच के दरमियान साक्ष्य जमा करने के लिए गाँव में घुम-घुमकर व्यक्ति खोजना चाहा जबकि आरोपी का बयान दर्ज करने को तैयार नहीं हुए। वन पदाधिकारी के इस क्रिया-कलाप से वनरक्षी भयभीत हो गया एवं अपने को फंसा हुआ समझ कर बचाव के लिए एक पीछे के तिथि से आरोपी पर अपराध प्रतिवेदन काट दिया। जब जाँच पदाधिकारी दूसरे दिन नीचले स्तर पर कारवाई की जानकारी माँगी तो वनरक्षी ने अपराध प्रतिवेदन समर्पित करने की बात प्रकाश में लाया और इस खींचतान एवं फँसने-फँसाने के चक्कर में एक गरीब इंदिरा आवास आवंटी पर वन मुकदमा दर्ज हो गया।
Ø ऐसे बच गये प्रखंड विकास पदाधिकारी/कर्मचारी: दर्ज अपराध का जब मैने जाँच शुरू किया तो ये बात प्रकाश मे आयी कि इसके लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं कर्मचारी कम दोषी नहीं थे क्योंकि इंदिरा आवास के आवंटन की राशि उनके द्वारा दी गयी थी, जबकि प्रखंड कर्मचारी ने जमीन की मापी कर आरोपी को उसी जमीन पर मकान बनाने की अनुमति दी थी। मामला जब प्रकाश में आया तो कर्मचारी पूर्व की कारवाई से मुकर गया। मैंने जब अपने अनुसंधान पर उन्हें सह अभियुक्त बनाने की तैयारी पूरी कर ली तभी मुझे नियंत्रण पदाधिकारी से विचार-विमर्श हेतु बुलाहट आ गई एवं मुझे ऐसा करने से रोक दिया गया और कहा गया कि जो सीधे तौर पर दोषी है, उसी पर कारवाई करें। मैं इस तरह के निर्देश से अचम्भित था। मैं जब इस तरह के निर्देश के तह में गया तो पता चला कि प्रखंड विकास पदाधिकारी को अपने ऊपर कारवाई की भनक लग गयी थी एवं उन्होने नियंत्रण पदाधिकारी के पास पैरवी की थी कि मेरी एवं अन्य कर्मचारियों की नौकरी चली जायेगी। इस पिछ्ले दरवाजे की कारगुजारी कि जानकारी मुझे नहीं थी। इस तरह से अपना पल्ला झाड़ एवं नौकरी की दुहाई देकर सह आरोपी बच गये।
Ø यहीं पर वन सुरक्षा समिति के अधिकार काम आते: धनबाद वन प्रमंडल में उस वक्त वन सुरक्षा समिति शैशव काल में कहीं-कहीं था। वन सुरक्षा समिति की अहमियत नहीं थी। वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाय तो आज 2007 के वन सुरक्षा समिति के अधिकार क्षेत्र में वनभूमि पर वन अपराध घटित होने पर प्रारम्भिक जाँचोपर्यंत प्राथमिकी दर्ज कराने का अधिकार वन सुरक्षा समिति के पास है। अगर ये प्रावधान उस समय होते एवं सही ढ़ंग से लागू होते तो ये मुकदमा दर्ज हीं नहीं होता क्योंकि वन सुरक्षा समिति उस घटना को होने से रोक देती अथवा होता यूँ कि वन सुरक्षा समिति, जो उसी गाँव में 24 घंटे मौजूद रहती है, वह् स्वंय पहल कर बीच का रास्ता निकालती, तब वनरक्षी उक्त घटना का अपराध प्रतिवेदन सीधे मुझे समर्पित नहीं कर सकता।
अतः मैं कह सकता हूँ कि ग्रामीणों पर दोहरी मार पड़ रही है, एक तो वे सुरक्षित वन जिसपर उनका हक होना चाहिए था, उससे वंचित हैं, दूसरी ओर किसी छोटी सी भूल के लिए उन्हें भारी दण्ड का भागी भी बनना पड़ रहा है। आज भी वन सुरक्षा समिति के उक्त अधिकार को ग्रामीणों की जानकारी एवं अशिक्षा के वजह से समाप्त करने का षडयंत्र हो रहा है क्योंकि इससे वन विभाग का एकाधिकार जो समाप्त हो जायेगा। कोई भी आज के परिपेक्ष में जनभागिदारी को सच्चे मन से अंगीकार करना नहीं चाह रहा है, जो झारखण्ड के लिए दुःखद है।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

पैसा न होतई तो कर्जा ले लेबई हुज़ुर:सन्दर्भ इंदिरा आवास आवंटी

मैं गवाही के उपरांत कोर्ट पदाधिकारी से उपस्थिति सम्बंधी प्रमाण-पत्र प्राप्त करने हेतु कोर्ट कक्ष के वकील बेंच में बैठा इंतजार कर रहा था। भोजन अवकास के उपरांत पुनः कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई। आरोपी भी अगली तिथि लेने के लिए कोर्ट कक्ष में हीं एक कोने में खड़ा था। माननीय न्यायिक दंडाधिकारी उसे देखते हुए बोले,तुमको कौन तिथि चाहिए? आरोपी निश्चल भाव से बोला,हुज़ुर, अबर लम्बा समय दे दिजिए, लड़की की शादी अगले हप्ता में है। न्यायिक दण्डाधिकारी हमारी ओर देख रहे थे, मैं भी निशब्द उनकी ओर देख रहा था। वे चिंतित एवं व्यथित थे। उन्होने आरोपी को कहा,तुम्हीं बताओ किस तिथि को अगली सुनवाई रखें। आरोपी बोला,अगला महीना के पहली के हुज़ुर दे दिया जाता तो सहुलियत होता,तत्पश्चात दण्डाधिकारी महोदय ने अपने पेशकार को उक़्त कार्यवाई करने का निर्देश दिया एवं उसकी ओर मुखातिब होकर बोले,सुनो, तुम कौन वकील के चक्कर में पड़े हो जो तुम्हें 1400 रुपये का केस दस साल से लड़ा रहा है। ये तो कब का खत्म हो जाना चाहिए था, ऐसा करो! तुम अगली तिथि को विना वकील के आना और अपने पास दो-तीन सौ रूपये रखना, समझे न भूलना नहीं, समझे न मैं क्या कह रहा हूँ। फिर मेरी ओर मुखातिब होकर बोले न्युनतम फाईन कितना है? मैं कहा,सर, 500 रूपये। इसपर कोर्ट कक्ष से बाहर जा रहे आरोपी को रोकते हुए कहा,सुनों, पाँच सौ रूपया लेकर आना, फिर थोड़े सकते एवं चिंतित मुद्रा में बोले,सुनों, जुगाड़ कर लोगे न! आरोपी किंकर्तव्यविमुढ़ था, वहीं न्यायिक दण्डाधिकारी आशंकित थे कि ये पैसा का इंतजाम कर पायेगा या नहीं। आरोपी को समझ में नहीं आ रहा था कि हुज़ुर आखिर ये सारी बातें उससे सीधी तौर पर न्यायिक कुर्सी पर बैठकर क्यों बोल रहें है। उसने चिंतित मन से सिर हिला दिया।

दण्डाधिकारी महोदय ने मुझे उसे मदद करने का संकेत किया, जिसे मैं समझ गया और कोर्ट कक्ष से बाहर आकर उसे समझाया। सुनों तुम वकील के विना अगली तिथि पर कोर्ट में उपस्थित हो जाना और पाँच सौ रूपया लेते आना। जो आरोप तुम पर है उसके लिए दण्ड के रूप में कम से कम पाँच सौ रूपये जुर्माना या दो साल कैद का प्रावधान है। दण्डाधिकारी महोदय कोमल हृदय के इंसान हैं। अतः तुम्हे पाँच सौ रूपया जुर्माना लेकर छोड़ देंगे और तुम्हारा केस उसी दिन समाप्त हो जायेगा। तुम किसी दलाल के चक्कर में मत आना। इतना सुनना था कि उसका चेहरा चमक गया और खुशी मन से बोला,पैसा न होतई तो कर्जा ले लेबई हुज़ुर, ई केस कसहूँ खत्म हो जाय, दस साल से पेराई गेलेई हे। (पैसा नहीं होगा तो कर्ज ले लेंगें, ये केस किसी तरह से खत्म हो जाय, दस वर्ष से परेशान हैं) तत्पश्चात अभिवादन कर वह विदा हुआ।

............क्रमशः

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

इन्दिरा आवास आवंटी पर मुकदमा ठोक दिया, क्या यही हमारी कार्यपद्धति है?

फरवरी 2007 की नियत तिथि को मैं धनबाद न्यायालय के एक कोर्ट के विट्नेस बॉक्स में खड़ा था। बचाव पक्ष के अधिवक्ता हमसे सवाल पूछा, आप इस केस के अनुसंधान पदाधिकारी हैं? मैंने कहा, जी हाँ, क्या आप जाँच के दौरान घटना स्थल पर गये थे? मैंने कहा, जी हाँ, आप वहाँ पर क्या पाया? मैंने कहा, मैंने एक अर्धनिर्मित पक्का मकान बना हुआ पाया जो प्लिंथ लेबल तक बना था, जिसका पार्ट भाग वन भूमि पर निर्मित था, अतः वनरक्षी का अपराध प्रतिवेदन सही पाया, इसके बाद अधिवक्ता महोदय ने सवाल किया, क्या मालूम है कि आरोपी अनुसूचित जन-जाति का है? मेरा जबाब था, जी हाँ, ये जानकारी अपराध अनुसन्धान के दौरान मेरे समक्ष आयी, अधिवक्ता महोदय ने आगे कहा, आप ने अनुसन्धान में ये भी पाया कि आरोपी सरकार की योजना अंतर्गत तोंपचाँची प्रखण्ड द्वारा उपलब्ध कराई गयी इन्दिरा आवास के अंतर्गत आवंटित राशि से मकान बना रहा था, जिसे रोक दिया गया था, मैंने कहा, ये सत्य है, अधिवक्ता ने आगे कहा, आपको पता है कि आरोपी अब उसी मकान में रह रहा है, मैंने कहा, मुझे नहीं मालूम क्योंकि मेरा स्थानांतरण वर्ष 1999 में हीं यहाँ से हो गया था। तत्पश्चात मेरे गवाही को कलमबद्ध किया गया। 

10 वर्ष की सजा: मैनें उक्त घटना की सजीव चित्रण इस लिए किया क्योंकि मुझे खुद नहीं पता था कि ये घटना दस वर्ष पुरानी थी, यानि वर्ष 1997 की थी। मैने जब केस रिकॉड का कोर्ट कक्ष में अध्ययन किया तो अपने जाँच प्रतिवेदन पर हीं अचम्भित था, क्योंकि मुकदमा मात्र 1400 रुपये के वनक्षति का तथा इन्दिरा आवास निर्माण का था एवं इसका स्पष्ट जिक्र मैंने अपने अनुसन्धान प्रतिवेदन में कर रखा था। मुझे आश्चर्य इस पर भी हो रहा था कि इस गरीब ने तो दस वर्ष सालों तक कोर्ट का चक्कर लगया वो भी एक छोटी भूल के लिए, जिसमें आरोपी की आंशिक गलती थी। गलती तो प्रखंड कार्यालय ने भी की थी, लेकिन खामियाजा इसे भुगतना पड़ा। उक्त  विचारों का आदान-प्रदान माननीय न्यायिक दण्डाधिकारी के कार्यालय कक्ष में भोजन अवकाश के दौरान हो रही थी। माननीय न्यायिक पदाधिकारी काफी गम्भीर तथा द्रवित थे। वे जानना चहते थे कि आरोपी तो अनपढ़ एवं गरीबी रेखा के नीचे का नागरिक है फिर इसने ऐसा कार्य क्यों किया? मै चूकि जाँच पदाधिकारी था अतः न्यायिक प्रक्रिया से अलग हटकर मानवता की ख़ातिर अपराध की अतीत जानने को उत्सुक थे। पूरी घटना फ्लैस-बैक की तरह मुझे स्मारित हो गयी। मैंने कहा, सरकारी कार्य व्यवस्था का बली ये गरीब चढ़ गया है, मुकदमा तो प्रखण्ड विकाश पदाधिकारी पर भी होनी चाहिए थी जिन्होंने घटना स्थल का निरीक्षण (स्थल चयन) कर निर्माण की अनुमति दी। जिस जगह यह वन भूमि में करीब पाँच फीट घुसा है, उसी के बगल में आरोपी इस भूमिहीन परिवार की गैर मजरुआ जमीन का आवंटन सरकार (प्रखण्ड) के द्वारा किया गया है। नाप-जोख में गड़बड़ी की वजह से भूलवश जंगल की जमीन में घुस गया। गलती तो मेरे वनरक्षी की भी है, जिसने सही समय पर जाकर उसे रोका नहीं था। जमीन की बनावट भी ऐसी है कि कहीं पिलर नज़र नहीं आता एवं वनभूमि, रैयत तथा गैर मजरुआ भूमि में सिर्फ आँखो से देखकर अंतर करना मुश्किल है। घटना जब प्रकाश में आयी तो मैंने वनरक्षी से तहकिकात किया तो उसने तुरंत अपराध प्रतिवेदन थमा दिया। मैं घटना की जाँच के लिए गया और घटना स्थल पर हीं पूछा कि आपने इन्दिरा आवास आवंटी पर मुकदमा ठोक दिया, क़्या यही हमारी कार्यपद्धति है? जो व्यक्ति अपना घर अपने पैसे से नहीं बना सकता, शरीर पर ढ़ंग से कपड़ा नहीं है, वह अब मुकदमा लड़ेगा, मै विफ़र था लेकिन न्यायिक प्रक्रिया से बँधा था और मुझे वनरक्षी के अपराध प्रतिवेदन को स्वीकार करना पड़ा। उस गरीब की दस वर्षो की मांसिक एवं आर्थिक पीड़ा को मैं और न्यायिक पदाधिकारी सिर्फ महसूस करने की कोशिश कर रहे थे कि इस एक छोटी सी भूल के लिए कितनी बड़ी सजा मिल गयी।

क्रमशः..................

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

क्या बन्धुआ है वनों पर ग्रामीणों का हक?

राज्य के कुल 23605.47 वर्ग कि0मी0 वन क्षेत्र का 81.27% {19184.78 वर्ग कि0मी0} भाग सुरक्षित वन हैं, जो पूरे भौगोलिक क्षेत्रफल का करीब एक चौथाई तथा करीब 13000 गाँव में अवस्थित है। सुरक्षित वनों से ग्रामीणों के विशेष सम्बन्ध का प्रावधान भारतीय वन अधिनियम की धारा-30(बी) में इस प्रकार हैः-
* किसी भी सुरक्षित वन के पूरे क्षेत्र को एक साथ बन्द (प्रतिबन्ध) नहीं किया जा सकता है।
* सुरक्षित वन के न्युनतम 1/30 भाग को बन्द (प्रतिबन्ध) से प्रत्येक वर्ष बाहर रखना होगा।

* प्रतिबन्ध से बाहर रखे गये क्षेत्र में मात्र निजी लोग हीं अपने अधिकार का उपयोग कर सकेंगे।
उपरोक्त कानूनी प्रावधानों के बाद भी क्या ग्रामीणों को अपना हक मिला? समीक्षोपर्यन्त पाया गया कि राज्य सरकारों ने राजस्व के लिए व्यावसायिक दोहन किया, जिसका कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। सुरक्षित वनों में केवल निजी लोगों द्वारा अधिकार प्रयोग का हीं प्रावधान हैं।
घटनोत्तर समीक्षोपर्यन्त ये तथ्य सामने आया है कि भारतीय वन अधिनियम 1927 के अंतर्गत दो तरह के वन अधिसूचित किये गये। स्वतंत्रता के पूर्व के बने सुरक्षित वन जिसमें प्रायः पहले स्थानीय व्यक्तियों के हक सुनिश्चित कर हीं अधिसूचना जारी की गयी थी। दुसरे तरह के वन जो जमींदारी उन्मूलन के साथ सरकार में निहित हो गये और भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत वन विभाग को सौंप दिये गये। जमींदारी उन्मूलन के साथ हीं उन्हें नये बने “बिहार निजी वन अधिनियम 1946, 1947 एवं 1948” के अंतर्गत “निजी सुरक्षित वन” घोषित किया। फिर 1952 के बाद भूमि सुधार अधिनियम के अंतर्गत इन वन भूमि को लाकर भारतीय वन अधिनियम 1927 के अंतर्गत समय-समय पर सुरक्षित वन घोषित किया।
देश की आजादी के बाद सरकार वनों का वैज्ञानिक प्रबन्धन के लिए अपने नियंत्रण में लेकर सरकारी व्यवस्था कायम की। इसके फलस्वरूप अनेक वन प्रमन्डल सृजित किये गये और आरक्षित वनों की तरह सुरक्षित वनों के प्रमंडलवार कार्य नियोजना तैयार की गयी एवं वार्षिक कूपों का निर्माण कर सरकार ने राजस्व प्राप्ति के लिये व्यवसायिक कटाई की पद्धति लागू की गयी। वर्ष 1980 तक कूपों में कटाई अधिकांशतः ठीकेदारों के साथ बन्दोबस्ती के आधार पर की जाती रही। बाद में ठीकेदारी प्रथा समाप्त कर सरकारी व्यवस्था के तहत वन विभाग का राजकीय व्यापार प्रमंडल ने उक्त जिम्मेवारी ली। वर्ष 1990 के बाद से वनों में वृक्षों की कटाई बन्द है तथा इससे सरकार को राजस्व की प्रप्ति भी नगन्य है।
आजादी पूर्व इन वनों का नियंत्रण जमींदारों के पास था जिन्होंने अपनी शक्ति एवं इच्छा के अनुसार व्यवस्था लागू कर ठेकेदारों से वनों की कटाई की और अपनी आमदनी बढ़ाई। इस दौरान भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-30(बी) का चीरहरण हुआ क्योंकि यहाँ प्रावधान हीं लागू नहीं किया गया। आजादी के बाद भी ठीकेदारी प्रथा लागू रही एवं पूर्व व्यवस्था कायम रखी गयी तथा प्राप्त राशि को अब सरकारी खाते में जमा किया गया। बाद में कार्य नियोजना में बड़े पैमाने पर कटाई के प्रचलन को सरकारी व्यवस्था के तहत समाहित कर दिया गया।
कार्य नियोजना में सरकार के राजस्व हेतू व्यवसायिक कटाई को मूल आधार दिया गया तथा ग्रामीणों को अंश जगह दी गयी। जब 1990 में वनों की कटाई रोक दी गयी तो वन अधिनियम-1927 की धारा-30(बी) के अधीन ग्रामीणों के अधिकार भी शून्य हो गये एवं उक्त अधिनियम के पूर्णतः विलोपित होने जैसी स्थिति कायम हो गयी है।
झारखण्ड राज्य के गठन के उपरांत संयुक्त ग्राम वन प्रबंधन समिति का गठन हुआ जिसके तहत जंगल से प्राप्त कुल राजस्व का 90% ग्रामीणों को संयुक्त रूप से देने का निर्णय लिया है। परन्तु झारखण्ड राज्य के एक भी सुरक्षित वन के मामले में इस निर्णय का अभी तक कार्यान्यवन नहीं हुआ है। उक्त परिस्थिति कार्य नियोजना के तहत व्यवसायिक कटाई की प्रचलित धारणा को हीं संयुक्त वन प्रबंधन के नीति में अंगीकार करने की वजह से हुई और आज की तिथि तक ग्रामीणों को वनों पर हक बंधुआ बना हुआ है। इससे कब मुक्ति मिलेगी अनिश्चित है।
झारखण्ड राज्य की अनुसुचित जनजाति एवं अन्य ग्रामीणों के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए पूरे वन विभाग को वर्षो से ठगे एवं छले जा रहे ग्रमीणों के बंधुआ रखे हक को, भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा-30(बी) के प्रावधानों के मूल भावना को लागू कर हीं मुक्ति दी जा सकती है। इसमें वरीय वन पदाधिकारियों की इच्छा शक्ति के साथ पूरे विभाग को समग्र रूप से अग्रसर होना होगा।

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

जनभागीदारी की मान्यता से अपराध पस्त

वन सुरक्षा समिति दोनाई कला पुनः जोशो-खरोश से अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने लगी। मैं भी हुलास मह्तो के मामले का अनुसन्धान कार्य शुरू किया क्योंकि त्वरित कारवाई हेतू न्यायालय को अविलम्ब अभियोजन प्रतिवेदन जाना जरूरी था। वन सुरक्षा समिति दोनाई कला द्वारा समर्पित कांड की प्राथमिकी भी प्राप्त हुई थी जो वन विभाग के इतिहास की पहली प्राथमिकी थी। मैंने साक्ष्य के रूप में वन वाद में समाहित किया एवं उनके आवेदन (प्राथमिकी) के आलोक में अनुसन्धान कर अपना अभियोजन प्रतिवेदन वन प्रमंडल पदाधिकारी के माध्यम से न्यायालय के समक्ष उपस्थापित करने में सफल हुआ।
वन वादों का कानूनी प्रक्रिया में संक्षिप्त सुनवाई की व्यवस्था कायम है जिसमें घटना स्थल से जुड़े साक्ष्य (यथा घटना स्थल का नक्शा, अभियुक्त का ब्यान, जप्ती सूची एवं गस्ती दल सदस्यों की गवाही) के आधार पर अभियोजन पत्र सम्रर्पित किया जाता है लेकिन इस घटना में वन सुरक्षा समिति के सदस्यों की प्राथमिकी को संलग्न कर साक्ष्य के रूप में न्यायालय के समक्ष रखा गया एवं सरकारी वकील के माध्यम से इस ओर न्यायालय का ध्यान भी खिंचा गया।
न्यायालय ने भी कड़ा रूख अपनाते हुए मेरे याचणा पर न्यायालय ने हुलास मह्तो के विरूद्ध गिरफ्तारी वारंट निर्गत कर दिया एवं पदमा थाना प्रभारी को गिरफ्तारी में सहयोग देने का निर्देश दे डाला। मैंने तुरंत इसकी सूचना वन प्रमंडल पदाधिकारी को दी एवं वारंट की तामीला हेतू एक प्रमंडलीय जीप की याचणा की। वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कारवाई को बल देने के लिये प्रमंडल के दोनों जीपों को ले जाने की अनुमति दे दी जिससे मैं काफी उत्साहित था। उसी दिन करीब 3 बजे सुबह हुलास मह्तो के घर दो जीप की संख्या बल तथा थाना के कुछ चौकीदारों को लेकर छापा मारा, लेकिन अभियुक्त की सतर्कता की वजह से मैं उसे गिरफ्तार करने में सफल नहीं हो सका। ये भी पहली घटना थी कि वन विभाग ने अपने कुब्वत पर पहली गिरफ्तारी वारंट का तामिला करा रहा था जिससे अभियुक्त काफी भयभीत हो गया। कारवाई वन सुरक्षा समिति के पक्ष में हो रहा था और इससे उन्हें समाज में सम्मान भी मिल रहा था जबकि वनों की सुरक्षा पुख्ता हो गयी थी।
कुछ दिनों बाद वन विभाग एवं पुलिस द्वारा हुलास मह्तो की गिरफ्तारी हेतू उसके परिवार पर दविस बढ़ाई गयी और अंततः मजबूर होकर वह न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया जिससे वन मुकदमा पर संज्ञान लेकर न्यायालय द्वारा सुनवाई शुरू हो गयी।
इस घटना के बाद हीं पूरे हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रायणी के जंगल में वन सुरक्षा समिति का आधिपत्य कायम हो गया एवं वनों में अवैध पातन पर पूर्ण विराम लग गया। जिससे मुझॆ भी आत्म संतोष एवं कर्तव्य निर्वहण की संतुष्टि मिली। कुछ दिनों बाद वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री अरविन्द कुमार, भा0व0से0 की प्रोन्नति होने के उपरांत स्थानांतरण हो गया जबकि उसके कुछ दिनों बाद मेरा भी स्थानांतरण धनबाद वन प्रमंडल में हो गया और मैंने आत्मसंतोष के साथ नये पदस्थापन की ओर प्रस्थान किया कि शायद वन सुरक्षा समिति की परिकल्पना, घटित घटना एवं अनुभव भविष्य में फलदायी बनें।

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

जोश में होश खोये, हुए तड़िपार

मैंने तुंरत वर्दी पहनी, श्री दुबे वनरक्षी को साथ लिया एवं मोटर साईकिल से उस सात किलोमीटर की जंगल, पहाड़ की उबड़-खाबड़ रास्ते से चलते, फिसलते गांव पहुँचा. वहाँ की स्थिति देख मै भी एक पल को अन्दर से हील गया. जिस व्यक्ति पर रात में करीब ११ बजे हमला हुआ है, वह खाट पर रात के २ बजे तक पड़ा है और उसे अभी तक कोई डाक्टरी सुविधा प्राप्त नहीं हुई है. उसके शरीर से काफी खून निकल गया है एवं वह बेसुध लेटा है जबकि पूरा गावं मेला लगाकर खड़ा है और मेरा इंतजार कर रहा है. मैने तुंरत गाड़ी के बारे में जानकारी ली, पता चला कि जो युवक गाड़ी लाने गए हैं, अभी तक लौटे नहीं हैं. मैने कहा कि इसका इलाज़ जरूरी है अन्यथा इन्हें बचाना मुश्किल होगा. यहाँ से अस्पताल की दूरी तीन किलोमीटर थी, मैने कहा कि और कोई उपाय सोचों क्योंकि अगर गाड़ी नहीं मिली तो? इतने में वे उत्शाही नवयुवक भी साईकिल से आ गए थे जो मुझे बुलाने गए थे. वे हिम्मती एवं जोश से भरे थे. उन्होंने तुंरत कहा कि हमलोग खाट सहित इसको उठाकर अस्पताल ले चलते हैं, लेकिन मैंने उन्हें ऐसा करने से रोका एवं बैलगाडी लाने को कहा एवं कम से कम दो लालटेन लाने को भी कहा. लालटेन जंगली, पहाड़ी एवं कच्चे रास्ते में उनको रास्ता दिखलाता. मेरे कहे अनुसार एक बैलगाड़ी आयी, उसपर जख्मी को डाला गया. उनके साथ परिवार के लोग, समिति के लोग तथा पॉँच नवयुवक मंडली के लोगो को अस्पताल के लिए रवाना किया एवं मै मोटर साईकिल से अस्पताल पहुँचने का आश्वासन देकर भयभीत ग्रामीणों के बीच कुछ समय बिताने की योजना बनाई.
ग्रामीण बहुत डरे हुए थे. इनकी पूरी संख्या, यहाँ तक की औरते अपने छोटे बच्चो को भी अपने साथ उस रात्रि वेला में गाँव की चौपाल पर बैठे थे. मैने उन्हें आश्वत किया कि मै आप के साथ हूँ. मुझे जैसे हीं घटना का पता चला, तुंरत आ गया हूँ. घायलों का इलाज होगा. हुलास महतो पर आपराधिक मामला पुलिस दर्ज करेगी. में अभी यहाँ से जा कर पदमा थाना प्रभारी से बात करूँगा एवं प्राथमिकी दर्ज करूँगा. पुलिस भी आपको मदद देगी, ये एक जघन्य अपराध है. मै भी हुलास महतो को गिरफ्तार करने कि कोशिश करूँगा, उस पर केस दर्ज करूँगा, अगर वह नहीं पकड़ायेगा तो उसपर वारंट निकालूँगा, उसके घर की कुर्की-जप्ती होगी लेकिन किसी भी हालत में उसे छोड़ा नहीं जाएगा. मैं सुबह वन प्रमंडल पदाधिकारी से इस मामले पर बात करूँगा. आपने हिम्मत का काम किया है, सरकार के कार्य में मदद पहुँचाई है. आपके साथ सरकार है, देखियेगा इसका क्या परिणाम निकलता है. इतना सुनने के बाद ग्रामीण थोड़े सहज हुए एवं थोड़ी उनमे साहस बढ़ी. मै भी एक खाट पर उसी चौपाल पर बैठ गया.
थोडी देर बाद मै अस्पताल गया और घायलों के इलाज का इंतजाम कराया, तत्पश्चात समिति के लोगो के साथ पदमा थाना पहुँचा. थाना प्रभारी भी अभी-अभी सुबह की गस्ती से लौटकर चाय पी रहे थे. मै भी उनके साथ चाय पी एवं घटना पर चर्चा किया, तत्पश्चात तुंरत हुलास महतो पर प्राथमिकी दर्ज की गई. पुलिस गस्ती दल सुबह पॉँच बजे गाँव, जाँच के लिए पहुँची. मै भी थाने की जीप से हीं गाँव पहुँचा. पुलिस ने अपनी जाँच की कार्यवाही की और मैने ग्रामीणों को पुलिस के साथ सहज बनाने का कार्य किया. पुनः मै आठ बजे वन प्रमंडल पदाधिकारी के पास पहुंच कर उनके आवास पर रात की घटना की जानकारी दी. यह घटना वन सुरक्षा समिति के अस्तित्व से जुड़ा था. अगर हमलोग आपराधियों पर भारी नहीं पड़ते एवं वन सुरक्षा समिति की हिम्मत टूट जाती तो पूरा जंगल बर्वाद हो जाता. वन अपराधी अपनी योजना में सफल हो जाते, जंगल की कटाई शुरु हो जाती और हमलोग फ़िर पहलेवाली स्थिति में आ जाते. अतः किसी भी हालत में वन सुरक्षा समिति की जोश को कम नहीं होने देना है, ये बात वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कही और उन्होंने मुझे शाबासी देते हुए हरसंभव मदद देने का अश्वासन दिया. उन्होंने आज हीं पुलिस आधीक्षक को पत्र लिखने एवं उनसे मिलकर हुलास महतो की गिरफ्तारी की पहल करने की बात कही, जो मुझे भी जोशीला बना रहा था. सभी बातचीत की जानकारी मैने वन सुरक्षा समिति के सदस्यों को दी ताकि उनका कारवाँ रुके नहीं.
दुसरे दिन से हीं पुलिस तथा वन विभाग की दविस बढी. हुलास महतो की गिरफ्तारी हेतू छापामारी शुरु हुई जिससे घबरा कर एवं अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए वह घर द्वार छोड़ कर भागा.

शनिवार, 10 जनवरी 2009

जब दोनाईकला गाँव के हुलाश महतो ने वनसुरक्षा समिति के सदस्यों पर टांगी से जानलेवा हमला किया

मेरे पूरे परिसर में समिति गठन का कार्य संपादित हो गया था। समितियों का कार्य संतोषजनक था। वनों की कटाई में अचानक गिरावट आ गयी थी। हम वनकर्मी भी थोड़े आराम से सेवा दे रहे थे। अब वनों में आपराधियों से लुक्का-छिपी का खेल नही हो रहा था। वन समितियां पुरे लगन से वन बचा रही थी। वे जागरूक हो गए थे। उन्हें जब कोई अपराधी धमकता या परेशान करता था तो उनकी सूचना पर वन अपराधियों पर शक्त कार्यवाई किया करता था जिससे अपराध की संख्या में भारी गिरावट आयी।
दोंनाई कला वन सुरक्षा समिति पूरे वन्य प्राणी आश्रयणी, हजारीबाग का सर्वोतम समिति थी। यह पदाधिकारियों का भी चहेता समिति था। इसके कार्यों की चर्चा पूरे पार्क क्षेत्र के ग्रामो में थी। यहाँ पिछले एक साल से कोई सखुआ का पेड़ नही कटा गया था। वन समिति दोंनाई कला के सदस्य प्रत्येक रविवार को बैठक करते थे एवं जिस किसी ग्रामीण/अपराधी ने जंगल से पेड़ काटने की कोशिश की उसे सामाजिक रूप से दण्डित करते थे एवं अपराधियों को मेरे हवाले करने की धमकी देते थे जिससे समिति एक सामूहिक एवं सामाजिक शक्ति के रूप में उभर रहा था। वन अपराधी इससे काफी भयभीत हो गए एवं इस ब्यवस्था को ध्वस्त करना चाहते थे। उसी गांव का एक शातिर बदमाश हुलाश महतो आनेवाले दिनों में समिति को आरोपित करने लगा। सामाजिक रूप से बनाये नियमो का उलंघन कर जंगल की कीमती लकडियो को काटकर बेचने लगा जिसकी सूचना मुझे भी मिली। मैंने समिति के अध्यक्ष की हिम्मत बढाई एवं कहा कि अगर वह नहीं मानता है तो रात्रि वेला में ही रंगे हाथो पकडिये एवं इसकी सूचना मुझे दीजिये, मैं उसे जेल भेज दूंगा। इससे समिति कि ताकत बढेगी और आपराधियों में भय फैलेगा जिससे जंगल सुरखित रहेगा। मेरे आश्वासन पर समिति के लोग एवं पूरे गांव के नवयुवक जोश से भर गए एवं समिति के लोग नवयुवको की छोटी- छोटी टोली बनाकर पूरे जंगल में रात्रि गस्ती कराने लगे ताकि उनकी संपदा की रक्षा हो सके तथा हुलास महतो रंगे हाथो पकडा जा सके।
तभी एक बड़ी घटना घट गयी। रात्रि वेला में हुलाश महतो जंगल से लकड़ी काटकर ला रहा था कि समिति के सदस्यों ने उसे ललकारा एवं उसे आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी। वह भी अड़ गया एवं अपने रास्ते से समिति के लोगो को हट जाने को कहा। इस बीच धरो- पकडो की कार्यवाई शुरू हुई और अपने को गिरफ्तारी से बचाने के लिए उसने दो लोगो पर अपनी भारी भरकम कुल्हाडी से हमला कर दिया। खून के फब्बारे निकलने लगे। ग्रामीण एवं समिति के लोग उस अपराधी के कार्यवाई से दहसत में आ गए। पूरा गांव रात के १२ बजे तक घायल लोगो का प्राथमिक उपचार कर रहा था। कुछ नवयुवक बगल के गांव से जीप लेन गए ताकि घायल को अस्पताल पहुंचाया जा सके।
इस बीच समिति के एक बुजुर्ग सदस्य ने नवयुवको को इसकी सूचना मुझे देने को कहा- उन्हें विश्वास था की मै जरूर मदद को आयूंगा। कुछ लोगो ने सुबह सूचना देने को कहा, वे इतने भयभीत थे की सात किलोमीटर जंगली एवं पहाडी रास्तो को तय कर मेरे पास पहुचने में एक तरफ़ जंगली जानवरों का डर था तो दूसरी तरफ हुलाश महतो अपने साथियों के साथ जंगल में छिपे होने एवं उनके ऊपर फ़िर से हमला करने से डरे थे।
रात करीब एक बजे होंगे , सभी वनकर्मी दिनभर की गस्ती के बाद आराम कर रहे थे तभी मेरे क्वार्टर के गेट पर किसी के चिल्लाने की आवाज सुनी - वह आवाज दोंनाई कला के प्रभारी वनरक्षी श्री अमेरिका दुबे का था। मैने तुंरत इस घबराहट भरी आवाज पर बाहर निकला तो देखा की २०-२५ नवयुवक हाथ में डंडा, फरसा, तीर धनुष लिए सहमे उनके साथ खड़े थे। श्री दुबे ने घबराहट भरी आवाज में कहा- "सर, हुलाश महतो आज गिरफ्तार हो गया था लेकिन दो लोगो पर हमला कर जंगल में भाग गया है। घायल लोग गंभीर हालत में है एवं पूरा गांव आपके आने का इंतजार कर रहा है। वे अनपढ़ लोग थाना-पुलिस भी नही जानते, अभी तक अस्पताल भी नही ले गए है। " मैने नवयुवको का चेहरा देखा, वे भय से कांप रहे थे। जो नवयुवक कल तक जोश से लबरेज थे आज एक टूटे हुए एवं जिंदगी से हारे प्रतीत हो रहे थे। मैने नवयुवको का चेहरा देखा, प्रभारी वनरक्षी की स्थिति देखी एवं तुंरत अपना फ़ैसला दिया कि मैं अभी आपके साथ गांव चलूँगा, दुबे जी आप भी वर्दी पहन लीजिये हमलोग पाँच मिनट में यहाँ से निकलेगे। नवयुवको को मैने कहा की आप लोग साईकिल से आगे बढो, डरने की कोई बात नही है, घायल को मै अस्पताल ले जाऊंगा। हुलास महतो अब जेल में होगा, तुम लोग हिम्मत से काम लो, मै तुंरत गांव पहुंच रहा हूँ। नवयुवक फ़िर से जोश में आ गए एवं उनकी शारीरिक गतिविधियाँ तीब्र हो गयी। वे दो- दो करके साईकिल पर सवार हुए एवं जोशीले अंदाज में गांव कि ओर कूच कर गए.
आगे-"जोश में होश खोये, हुए तड़ीपार "

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

जब वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जेहादी अंदाज दिखाया।

वन सुरक्षा समिति का गठन जेहादी अंदाज में शुरू हुआ। पुरे रेंज में गाँव - गाँव घूम कर समिति गठन का काम शुरू हुआ। अब कार्य क्षेत्र का कोई बंधन नही था। ख़ुद वन प्रमंडल पदाधिकारी अपने साथ वनपाल एवं वनरक्षी को लेकर गाँव में निकलते थे एवं समिति का गठन कर ही वापस लौटते थे।
कई मौके तो ऐसे आए की हमलोगो का मन एकदम गांव जाने का नही करता था। हमलोग तरह-तरह से वन प्रमंडल पदाधिकारी को समझाते थे की आज उस गाँव में नही जाया जा सकता है? लेकिन उनकी दिढ़ ईच्क्षा शक्ति ही थी की वे एक ही बात पर अड़ जाते थे की आख़िर वंहा गांववाले इकट्टा होंगे और हमलोगों के आने का इंतजार कर रहे होंगे। कितना भी मौसम ख़राब हो या भारी बारिश हुई हो समिति बनाने का प्रोग्राम स्थगित नही किया जा सकता था ऐसा जज्बा वे रखते थे ।
एक घटना जिहू वन समिति गठन की बताता हूँ । उस दिन आस्रायानी क्षेत्र में भारी बारिस हो रही थी, कच्चा रास्ता होने की वजह से वह पहुचना नामुमकिन था। समिति बनाने की तिथि पुर्व से ही तय थी एवं वन प्रमंडल पदाधिकारी आने वाले हैं ये बात भी प्रचारित था। नियत समय से सभी लोग पोखरिया बीट ऑफिस में उपस्थित थे एवं बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन बारिश कम नही हो रही थी। समय बीतता जा रहा था इतने में वन प्रमंडल पदाधिकारी ने आदेश सुनाया की हमलोग इसी बारिश में गाँव चलेंगे क्योकि गांववाले हमलोगों का इंतजार कर रहे होंगे। इतना सुनते ही सभी कमचारियों ने एक सुर में अस्वीकार कर दिया एवं कहा की ये विना फ़ोर व्हील की पुरानी जीप वहां जा ही नही सकती है लेकिन उनकी दृढ़ता के आगे किसी की नही चली और हमलोग लक्ष की ओर चल दिये। अभी हमलोग आधे किलोमीटर ही गए थे की एक चढाई पर गाड़ी फँस गयी । भारी बारिश में हमलोग गाड़ी नीचे उतरे और चढाई पर धकेल कर जीप को ऊपर पहुचाया एवं भीगे हुए गाँव पंहुचा।
हमलोग थोड़े थके थे लेकिन जब वहां की उपस्थिति देखी तो सभी दंग रह गए। ऐसी भारी जनसमूह को देख कर एक नया जोश भर गया एवं सभा की कार्यवाही शुरू कर दी गई एक फूल मेंबर कमिटी का गठन हुआ। गाववालो के बीच इस बात की बहुत खुशी थी की इतने भारी बारिश में भी हमलोग भींगते हुए उनके गाँव में आए। बाद की सभा में इसका फायदा भी हमलोगों को मिला की एक नोटिस पर पुरा गाँव सभा स्थल पर पहुच जाता था। हमलोग भी इस जेहादी अंदाज से कही न कही प्रभावित थे। आगे - "जब दोनाईकला गाँव के हुलाश महतो ने वनसुरक्षा समिति के सदस्यों पर टांगी से जानलेवा हमला किया।"

शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

जब वन सुरक्षा समिति का गठन शुरू हुआ और ग्रामीणों में प्रतिष्ठा मिली

ये दौर आलोचनाओं का था। हमलोग गाँव गाँव घूम कर ग्रामीणों में कमिटी का प्रचार कर रहे थे जबकि ग्रामीण मुझे अपना दुश्मन मान रहे थे। वो हमलोगों को देखना तक नहीं चाहते थे। ग्रामीण बात करने से भी कतराते थे। वे हमलोगों को वर्दी में देखकर अपनी जाने की राह तक बदल देते थे। उन्हें आशंका होती थी कि पता नहीं किसको गिरफ्तार करने आया है ?किसके बारे में जानकारी माँगेगा ? हमलोगों ने गाँव के साहसी एवम पढ़े-लिखे नवयुवकों के बारे में ग्रामवार सूचना एकत्र करना शुरू किया तो एक अलग अफवाह फैलाया गया कि फोरेस्टर नाम पता एकत्र कर रहा है, जेल भेज देगा,केस करने के लिए नाम पता खोज रहा है।
हमलोग थकहार कर पुन: वन प्रमंडल पदाधिकारी को अपनी व्यथा सुनाई कि मुझसे तो गाँव के लोग बात करने से कतराते हैं, समिति क्या बनायेंगे ? इसपर उन्होंने मेरी बात को गंभीरता से लिया और बोले कि घबराने कि बात नही है ये तो होगा ही, जिस गाँव के पांच - दस लोग जेल जा चुके हैं वो तो आपको अपना दुश्मन मानेगें हीं। आप जंगल गस्ती के पूर्व गाँव जरुर जाइएये उनको समझाईएये अगर आपको लगता है कि कोई बेगुनाह या प्रथम बार अपराध करने वाले पर केस हो गया है तो उसकी भी सूची बनायें। हमलोग उसका केस उठा लेंगे, इससे हमलोगों पर उनका विश्वास बढेगा और जैसे हीं आपको लगे कि सात लोग या पांच लोग भी वन सुरक्षा समिति बनाने हेतु तैयार हो गये हैं , आप मुझे सूचित करें, मैं उस गाँव में जाकर आपकी उपस्थिति में उनको समझाकर सामिति का गठन कर दूंगा।
निर्देशानुसार मैने कार्यवाई शुरू की दसियों के करीब छोटे वन अपराधियों की सूची वन पदाधिकारी को दी। उनका केस सुलह हुआ तत्पश्चात उनके गाँव में मेरी इज्जत होने लगी।मैंने भी अपनी पूर्व की कठोर कार्यवाई एवं गिरफ़्तारी की कार्यवाई में नरमी बरतना शुरू किया तथा ज्यादा कार्य ग्रामीणों के बीच करना शुरू किया। ग्रामीण न सिर्फ मेरी गतिविधियों पर ध्यान देने लगे बल्कि मैंने कई एक गाँव में गस्ती करते करते पहुंचता था एवं विद्यालय में बच्चों की एकाध क्लास भी लेता था, कभी उन्हें गणित के कुछ सवाल को हल करता था, कभी जनरल नौलेज से संबंधित जानकारियां देता था। ग्रामीणों की भीड़ जब जमा होती थी तो उसमे से कुछ नवयुवको को, जो जमीन नाप जोख में रूचि रखते थे, उन्हें सर्वे करने का तरीका बताने लगा। ये बात मेरे मन मे दोनईकला गाँव के एक नवयुवक ने डाली थी कि इस गाँव के लोग कम पढ़े-लिखे हैं एवं जमीन का झगड़ा हमेशे होते रहता है, किसी को नक्सा नहीं देखने आता है इसलिए आमीन उल्टा-पुल्टा सर्वे कर कभी किसी का जमीन, दूसरे की जमीन मे निकाल देता है।
तब मैं जब भी किसी गाँव में गया वनपाल प्रशिक्षण मे दिये गए सर्वेक्षण का प्रशिक्षण काफी काम आया और मैंने ग्रामीणों को मामूली जानकारी जैसे नक्सा देखने एवं गुनिया से नापने की कला सिखाई। जिससे ग्रामीणों ने मुझे अपना शुभचिंतक समझा एवं अन्य छोटे मोटे मामलों मे भी उनका सहयोग मै करता रहा तथा अपना मुख्य लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा वन सुरक्षा समिति का गठन करना शुरू किया। इस दौरान मैंने अपने परिसर के सभी मौजाओं में वन सुरक्षा समिति का गठन कर लिया। मेरे चार कमिटियों के गठन में वन प्रमंडल पदाधिकारी भी उपस्थित हुए। मैं ऐसे गाँव में वन प्रमंडल पदाधिकारी को ले गया, जहाँ के बुजुर्ग ग्रामीण ने ये कह डाला कि - आज तक इस गाँव में कोई डी एफ ओ क्या कोई रेंजर तक नहीं आया था।
आगे-................ " जब वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जेहादी अंदाज दिखाया।"

शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

जब वन अपराध की विभिन्न धाराओं को ग़ैर जमानती एवं संज्ञेय अपराध घोषित की गयी!

इस दरमियान ये सूचना आई कि वन प्रमंडल पदाधिकारी सभी वनरक्षियों, वनपालो एवं वन क्षेत्र पदाधिकारियों की एक बैठक कार्यालय प्रशिक्षण हेतु बुलाया, जिसमे सरकार द्वारा वन अपराध की विभिन्न धाराओ को ग़ैर जमानातीय एवं संज्ञेय अपराध घोषित होने पर एवं इस सापेक्ष में किस तरह कार्यवाई की जाय, इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। सभी वनकर्मी खुश हुए की अब अपराधियों को तुरंत जमानत नहीं मिलेगी तथा वन अपराध थमेगा लेकिन ये भ्रम भी जल्द हीं ख़त्म हो गई और जितनी अपेक्षा की गई थी, वह प्राप्त नहीं हुई लेकिन अवैध पातन कुछ कमी के साथ जारी रहा।
वन प्रमंडल पदाधिकारी से लेकर वनरक्षी तक अपनी कार्य कुशलता का सौ प्रतिशत दे रहे थे लेकिन कार्य में संतोष नहीं मिल रहा था। इसी बीच एक दिन वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री अरविन्द कुमार, भा० व० से० एवं सहायक वन संरक्षक श्री विकाश चन्द्र राजडेरवा पहुंचे। उनके साथ पोखरिया वनपाल श्री विजय कुमार सिंह भी थे। सभी कर्मचारी फिर से रेस्ट हाउस में एकत्रित हुए। वन प्रमंडल पदाधिकारी थोडे उदास थे, साथ हीं हाथ में एक फ़ाइल भी थी। वे हमलोगों के आने का इंतजार कर रहे थे। जब सभी कर्मी एकत्रित हो गए तो उन्होने हमलोगों के नजदीक आकर कुछ अखबार की कटिंग दिखाई और पढने को कहा जिसमे पार्क में हो रही अवैध कटाई को प्रकाशित किया गया था। तत्पश्चात वन प्रमंडल पदाधिकारी महोदय ने थोडे साहसी अंदाज में कहा इससे विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। हमलोग काम कर रहें हैं, इसमे हमलोगों को सफलता भी मिल रही है लेकिन आम लोग एवं उचाधिकारी आपके कार्य को नहीं देखेंगे, उन्हें उपलब्धि चाहिए, वो तभी दिखाई देगा जब अश्रयाणी क्षेत्र में अवैध पातन बंद हो जाएगा। इस संबंध में मैंने एवं सहायक वन संरक्षक ने कुछ नया करने को सोचा है। आपलोग भी अपनी राय दीजिए एवं इस नए चीज को तुरंत लागू भी हमलोग जल्द हीं करेंगे।

हमलोगों के हाथ में एक पेज का एक फार्म थमाया गया जिसपर ऊपर मोटे अक्षरो में लिखा था - वन सुरक्षा समिति ------ एवं नीचे विभिन्न कंडिकाऐं थी जिसमे एक ग्यारह लोगो की कमिटी गठन का प्रारूप था। फार्म देखने के बाद हमलोगों ने पुन: वन प्रमंडल पदाधिकारी को लौटा दिया, तब उन्होने इसपर अपना विचार देना शुरू किया - हमलोग हर रक्षित वन के बगल के गाँव के ग्यारह जागरुक नागरिको की कमिटी बनाएगे जो जंगल की सुरक्षा करेगा। आपलोग तो जानते हीं हैं कि रक्षित वन में ग्रामीणों कि हिस्सेदारी होती है, प्रतिवर्ष वे कूप के माध्यम से वृक्षों कि कटाई के उपरांत आपस में ग्रामीण बाँटते है, जानवरों को जंगल मे चराने, सुखी लकड़ी निकालने का हक खातियान पार्ट-२ के माध्यम से उन्हें प्राप्त है तो क्यो न उन्हें इस हक के प्रति जागरुक किया जाय ? इससे आपलोगों को फायदा होगा कि जो कटाई हो रही है वह रूक जाय! ग्रामीण जिस दिन समझ जायेगे कि ये मेरा जंगल है शायद वह वृक्षों को काटना बंद कर दें। जब कटाई हो तो वैज्ञानिक तरीके ताकि पारिस्थितिक संतुलन भी बरक़रार रहे एवं उनका हक भी मिल जाये तथा चोरी चुपके लकड़ी कटाने कि प्रवृति पर रोक लग सके। ये प्रस्ताव नया था लेकिन हमलोगों ने वन प्रमंडल पदाधिकारी की कोशिश मे अपनी सहमति दे दी एवं एक प्रयास करने का बीड़ा उठाने का आश्वासन दे दिया क्योकि ये सारे कार्य हमे समाज मे प्रतिष्ठा दिला सकते थे। अगर पार्क मे कटाई रूक जाती तो जनप्रतिनिधि, पत्रकार एवं जागरुक नागरिक हमलोगों के कार्य की आलोचना करना बंद कर सकते थे। आगे ..... "जब वन सुरक्षा समिति का गठन शुरू हुआ और ग्रामीणों में प्रतिष्ठा मिली"

बुधवार, 21 नवंबर 2007

जब वन सुरक्षा समिति के गठन की परिकल्पना ने जन्म लिया!

रात दिन की गस्ती एवं वन अपराधियों की गिरफ़्तारी तथा वन पदार्थ की जप्ती लगातार जरी थी, ये सिलसिला तीन माह तक चला लेकिन हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी वृक्षों की कटाई पर पूर्णत: रोक नही लगा। रोज जन प्रतिनिधि, जागरुक नागरिक एवं पत्रकार वन्य प्राणी आश्रयणी में अवैध पातन की शिक़ायत हजारीबाग से पटना तक पहुँचा रहे थे तथा उच्चाधिकारियों के तीखे तेवर दुविधा में डाल दिये थे। ये समय की परीक्षा थी कि क्या अवैध पातन पूर्णत: रूक पायेगा? इतनी गिरफ्फ्तारी, गस्ती एवं जप्ती के बाद भी पूरे वन्य प्राणी आश्रयणी से प्रतिदिन २० से ३० बैलगाडी सखुआ का सैपलिंग [बाल वृक्ष] काटा जा रहा था। ग्रामीण एवं वन अपराधी प्रतिदिन ये कार्य कर रहे थे। हमलोग रात्रि गस्ती एक ओर जाते तो सुबह खबर मिलती की फलां जगह से १० सगड़ [बैलगाडी] लकडी निकल गया। अत: ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा था। तब मन में ये बात आयी की और कोई रास्ता अवैध पातन से निपटने का हो सकता है क्या ?..........आगे -''जब वन अपराध की विभिन्न धारायो को ग़ैर जमानती एवं संज्ञेय अपराध घोषित की गयी!"

रविवार, 18 नवंबर 2007

हजारीबाग वन्यप्राणी आश्रयणी में वन अपराध पर अंकुश लगा!

समय बीतने के साथ मज़बूरी में शुरु की गई नौकरी रोचक बनने लगी। वन क्षेत्र पदाधिकारी स्वर्गीय श्री एस एन दुबे मेरे साहस एवं कार्यक्षमता का पुरा इस्तेमाल किया। अब मै सिर्फ अपने परिसर राजडेरवा में गस्ती नहीं कर रहा था बल्कि उनके साथ प्रमंडल से प्राप्त जीप में सवार होकर रात - दिन तीनो परिसर - वहिमर, राजडेरवा एवं पोखरिया में गस्ती कर रहा था तथा वन अपराधियों की धर- पकड़ तेज हो गई थी। रात में वन अपराधियों को गिरफ्तार करते थे एवं सुबह आठ बजे उनका चालान बनाते तथा जेल हाजत भेजने का कार्य करते थे। ये मेरा प्रतिदिन का रूटीन कार्य हो गया। जब पुरा माह समाप्त हुआ तो एक दिन वन प्रमंडल पदाधिकारी अचानक राजडेरवा पहुँच गए। हमलोग दोपहर का भोजन कर वन क्षेत्र पदाधिकारी के साथ आवासीय परिसर में हाफ़ पैंट एवं टी सर्ट पहन कर घूम रहे थे तभी वन प्रमंडल पदाधिकारी का जीप पहुँचा एवं उन्होने हाथ से हमलोगों को ईशारा करते हुए रेस्ट हॉउस पहुँचने को कहा। मै तुरंत तैयार हो कर वन क्षेत्र पदाधिकारी के साथ रेस्ट हॉउस पहुँचा। मुझे देखते ही चहकते हुए बोले - आपलोगों ने तो कमाल कर दिया, इस माह आपने २८ गिरफ्तार केस पकड़ा है । इसी बीच सभी वनरक्षी भी रेस्ट हॉउस पहुँच गये और जब हमने वन अपराधियों से की गयी शक्ति प्रयास का जिक्र किया एवं जंगल कटाई में कमी की बात बताई तो उनकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी। ज्ञात हो कि वे वन प्रमंडल पदाधिकारी श्री अरविन्द कुमार , भा० व० से० थे; जो वर्तमान में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, झारखण्ड है। .......... आगे - " जब वन सुरक्षा समिति के गठन की परिकल्पना ने जन्म लिया! "

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

जब मैंने वनपाल की नौकरी छोड़नी चाही


वह वक्त था ; वर्ष - १९९० का। मेरा पदस्थापन हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल के राजडेरवा परिसर में हुआ। प्रशिक्षण के बाद घने जंगलों के बीच पहला कार्य पदस्थापन था। मै एक अविवाहित नवयुवक था और सीधे विश्वविद्यालय की पढाई छोड़ कर सरकारी सेवा मे आया था। पदस्थापन के दूसरे दिन ही वन प्रमंडल पदाधिकारी से साक्षात्कार करने हजारीबाग पहुँच गया और उनसे अनुरोध किया कि मेरी पदस्थापन दूसरी जगह कर दें , मैं वहाँ नहीं रह पाऊँगा। वन प्रमंडल पदाधिकारी मेरी भावना से अवगत हुए , मेरी पूरी बात को सुना एवं मुझे आश्वस्त किया कि मैं जरूर आपकी बात सुनूंगा, कल मैं पार्क आऊँगा वहीं विस्तार से बात करूँगा ।
दूसरे दिन नियत समय से वे राजडेरवा आये एवं मुझे, वन क्षेत्र पदाधिकारी एवं दो वनरक्षियों को साथ लेकर पैदल जंगल की ओर निकल गए एवं मेरी पूरी समस्या सुनी और क्षेत्र पदाधिकारी को एक तरफ ले जाकर कहते मैंने सुना -"ये नया लड़का है, शहर से आया है, इसको नौकरी में रूचि जगाइए, थोडी नरमी बरतिएगा, अच्छा काम करेगा ।" फिर मेरे पास आकर बोले - मै आपकी बात पर विचार करूँगा, आप नवयुवक हैं कुछ काम दिखाईये, यहाँ कटिंग की समस्या है, इसको कंट्रोल कीजिए, आपको इसके लिए जितने स्टाफ चाहिए, वाहन चाहिए मुझको बताये । दिन भर की नौकरी एवं पहली प्रशासनिक अनुभव ने मुझे अन्दर से हिला दिया था। मेरी बात तो सूनी गयी लेकिन उसका प्रतिफल मुझे तुरंत नही मिलने वाला था, इसके लिए मुझे राजडेरवा में अपना मुख्यालय रखना पड़ता एवं इस घनघोर जंगल में जहाँ १० किलोमीटर की परिधि में कोई आबादी नहीं थी। सिर्फ ५किलोमीटर के दूरी पर १० घर के एक बस्ती कैले था, जहाँ मुश्किल से गाय का शुद्ध दूध मिलता था।
ऐसी मनःस्थिति मे अन्तिम रूप से निर्णय लिया कि मैं इस नौकरी को छोड़ दूंगा और इसकी सूचना मैंने अपने बडे भाई साहब श्री विद्या सागर सिंह , जो उस वक्त पुलिस ट्रेनिग कॉलेज हजारीबाग में अवर निरीक्षक का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे उन्हें दी। मेरी बात सुनकर वे दु:खित हुए एवं मुझे अपने फैसले पर पुन: विचार करने कि सलाह दी। ...........आगे... Sunday, 18 November, २००७ -''हजारीबाग वन्यप्राणी आश्रयणी में वन अपराध पर अंकुश लगा!"

लेखों की सूची { All Post }